इस महादेश के वैज्ञानिक विकास के लिए प्रस्तुत प्रगतिशील रचनाओं की अनिवार्य पुस्तक
मैं अपने वसीयतनामे में और बातें लिखना
चाहता हूँ, लेकिन मैं पस्त हो चुका हूँ। मेरे शरीर
की एक एक शिरा थक चुकी है। फिर मेरी हिन्दी
भी टुटपुंजिया है। मुझे अपने धर्म और देश के प्रति
वफादार रहना सिखाया गया था लेकिन अब तक
मैं पूरा नास्तिक हो चुका हूँ और अपने देश के
खिलाफ मैंने हथियार उठा लिया। अब मैं सोचता हूँ
कि यह रास्ता बरबादी की तरफ ले जायेगा। लेकिन
मैं वापस नहीं लौट सकता। अगर यह वसीयत
आप लोगों के हाथ लगे तो पढिय़ेगा और सोचियेगा कि
आदिवासी लोग क्यों बागी हो रहे हैं।
उदयभानु पांडेय की एक कहानी से
डिफू, असम 2012
पहल ९३
ReplyDeleteपत्राचार
सवाल क्या पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी को २५ प्रतिशत अंक मिलने चाहिए ????
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपहल ११९ अंक मिला। धन्यवाद ! प्रत्येक अंक प्रभावोत्पादक एवं ज्ञान वर्धक है।साहित्यिक ( ? ) कार्टून त़ो तीक्ष्ण,सान्दर्भिक और प्रभावकारी है।
ReplyDelete